दार्जिलिंग की पहाड़ियों में छाई अशांति पश्चिम बंगाल के आम नागरिकों और शायद राज्य सरकार के लिए भी एक झटके की तरह है. शायद गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) को भी गोरखालैंड की मांग को मिले व्यापक जन समर्थन से आश्चर्य हुआ हो.
राजनीति का यह स्वभाव है कि हम स्थिति को जितना शांतिपूर्ण मानते हैं, स्थितियां उतनी ज़्यादा बेचैनी और विवाद को अपने भीतर छिपाए रहती हैं.
सड़क की संघर्षपूर्ण राजनीति से उठकर आने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यह बात बख़ूबी जानती हैं. लेकिन सत्ता, शासक को थपकियां देकर सुला देती है और ख़तरनाक ढंग से हैरान करना राजनीति की आदत है.
18 जुलाई, 2011 को जीजेएम, पश्चिम बंगाल और केंद्र सरकार के साथ तीन-तरफ़ा समझौते के तहत दार्जिलिंग पहाड़ियों में गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन या जीटीए) का गठन किया गया था.
पश्चिम बंगाल के एक राज्य अधिनियम के सहारे जीटीए ने अगस्त, 2012 में दार्जिलिंग गोरखा हिल्स काउंसिल का स्थान लिया. यह एक राजनीतिक प्रक्रिया थी, जिसकी कामयाबी के लिए सरकार और गोरखा राजनीतिक आंदोलन, दोनों को स्वायत्तता के सिद्धांत के प्रति सम्मान और दूरदर्शिता प्रदर्शित करने की ज़रूरत थी.
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