एक बहस खुलेपन पर

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नंगों की भीड़ राष्ट्र के समक्ष खड़ी है और एक दूसरे पर नंगा होने का आरोप लगा रही है। राष्ट्र को कायदे से इस पर अवाक रह जाना चाहिए, मगर ऐसा बिलकुल भी नहीं है। उसे तो नंगापन देखने की आदत सी हो गई है। वह तो इस बहस को दिलचस्पी से सुन रहा है, बस।

नंगों के बीच आरोप-प्रत्यारोप जारी हैं:

‘इनको देखिए। वे आगे से तो बढ़िया पैंट चढ़ाए हैं, परंतु पीछे से पूरे नंगे हैं। सरकार अगर इनकी पूरी जांच कराने के लिए समिति बिठाए तो सारे तथ्यों का खुद ब खुद खुलासा हो जाएगा। एक नंगा इस हमाम में बैठकर, छोटा बयान दे रहा है, जहां सब नंगे हैं।

‘नंगेपन के इन छिछले आरोपों में कोई सच्चई नहीं। सरकारी एजेंसियां पहले भी हमारी जांच कर चुकी हैं। नंगा नामालूम कौन सी जांच रिपोर्ट को मीडिया के सामने लहरा रहा है।

‘जब तक जांचकर्ता पूरी तह तक पहुंचे, तुम चुपके से घूम गए। वे पीछे तक गए, मगर जांच आगे की ही करके क्लीन चिट पकड़ा दी’ कोई और ..।

‘क्या हमारी जांच एजेंसियों पर आपको भरोसा नहीं ?’

‘भरोसा है, तभी तो।’

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