गुलाबी पोशाक पहने, कंधे पर बस्ता टांगे कांता मोरे हर सुबह अपने स्कूल जाती हैं और नर्सरी की उन कविताओं का अभ्यास करती हैं जिसे उन्होंने पहले सीखा था। फांगणे गांव की 60 से 90 साल के उम्र की दादी, नानियां वक्त के पहिए को पीछे घुमाते हुए स्कूल जा रही हैं।
इस अनूठे प्रयास को 45 वर्षीय योगेंद्र बांगड़ ने शुरू किया है। बांगड़ का लक्ष्य गांव की बुजुर्ग महिलाओं को शिक्षित करना है। फांगणे जिला परिषद प्राथमिक स्कूल के शिक्षक बांगड़ ने मोतीराम चैरिटेबल ट्रस्ट के साथ मिलकर यह पहल की। मोतीराम चैरिटेबल ट्रस्ट इन महिलाओं को स्कूल के लिए गुलाबी साड़ी, स्कूल बैग, एक स्लेट और चॉक पेंसिल जैसे जरूरी सामान के साथ कक्षा के लिए ब्लैकबोर्ड उपलब्ध कराता है।
स्कूल में दिन की शुरुआत कांता मोरे अपनी कक्षा के 29 छात्रों के साथ प्रार्थना से करती हैं और फिर अपने काले स्लेट पर चौक से मराठी में आड़े तिरछे अक्षरों को लिखने की कोशिश करती हैं। कांता और उनके दोस्त यहां के फांगणे गांव स्थित दादी नानियों के स्कूल ‘आजीबाईची शाला’ में पढ़ते हैं। यहां वे लोग प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करती हैं और गणित, अक्षरज्ञान एवं उनके सही उच्चारण के साथ नर्सरी कविताओं का अभ्यास करती हैं।
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