भगवती को जनहित याचिका यानी पीआईएल का जनक माना जाता है. उन्होंने याचिका दाखिल करने के लिए ‘लोकस स्टैंडाई’ होने यानी मामले से जुड़े होने की शर्त हटा दी. इससे जनहित के मामले में किसी भी शख्स के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने का रास्ता साफ हो गया. उनके कार्यकाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने किसी नागरिक की चिट्ठी को भी याचिका की तरह लेना शुरू कर दिया.
उनका न्याय-व्यवस्था में एक और यादगार योगदान रहा अनुच्छेद 21 की नई व्याख्या. मेनका गांधी पासपोर्ट मामले में उन्होंने ये साफ किया कि संविधान के तहत हर नागरिक को मिला जीवन का मौलिक अधिकार सिर्फ जीने तक सीमित नहीं है. जीवन का अर्थ है, सम्मान के साथ जीवन. इसके बाद right to life को right to life with dignity की तरह लिया जाने लगा. अब तमाम वकील ज़रूरत पड़ने पर इसे अपनी दलील का अहम हिस्सा बनाते हैं.
जस्टिस भगवती ने ये भी साफ़ किया कि संविधान से हर नागरिक को मिले मौलिक अधिकार जेल में बंद कैदियों को भी हासिल हैं. उन्हें इससे वंचित नहीं किया जा सकता.
न्यायिक गलियारों में बेहद सम्मानित जस्टिस भगवती के करियर में एडीएम जबलपुर केस शायद इकलौता ऐसा मामला रहा, जहाँ उनके फैसले की आलोचना हुई. 1976 के इस फैसले में 5 जजों की बेंच ने इमरजेंसी के दौरान किसी शख्स को हिरासत में लेने के सरकार के अधिकार की पुष्टि की. भगवती इस बेंच के सदस्य थे.
उनका अंतिम संस्कार शनिवार, 17 जून को शाम 4 बजे दिल्ली के लोधी कॉलोनी के विद्युत शवदाह गृह में किया जाएगा.
प्रधानमंत्री मोदी ने शोक व्यक्त किया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश पी एन भगवती के निधन पर दुख प्रकट करते हुए कहा कि भगवती ने न्याय व्यवस्था तक लोगों की अधिक पहुंच सुनिश्चित करने का काम किया.
मोदी ने ट्वीट किया, ‘’न्यायमूर्त भगवती का निधन दुखद है. वह भारतीय कानूनी बिरादरी के बड़े नाम थे. उन्होंने हमारी न्याय व्यवस्था तक लोगों की पहुंच बढ़ाने और करोड़ों लोगों को आवाज देने में उल्लेखनीय योगदान दिया.’’
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